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हमारी दिनचर्या कैसी होनी चाहिए जिससे हम आजीवन स्वस्थ और खुश रहें।

परिचय :-  आज हम हमारे आयुर्वेदिक ग्रंथ अस्तङ्ग हृदयम द्वारा बताए गयी दिनचर्या पर बात करेगे ।कि कैसे हम AyurdailyLife मे आयुर्वेद द्वारा बताई गयी दिनचर्या का पालन करके स्वस्थ,सुखी और लंबा जीवन प सकते है। स्वस्थ व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रछा करना  और रोगियो के रोग से मुक्ति करना आयुर्वेद के दो मुख्य उद्देश्य है । स्वास्थ्य  की रछा करने के लिए दिनचर्या मे विस्तार से बताया गया है ।आइये जानते है ।

ब्रह्म मुहूर्त  मे उठना : - हमे अपने स्वास्थ्य की रक्छा के लिए सुबह 4 बजे बिस्तर छोड़ देना चाहिए । सुबह की वायु पूर्णतह शुद्ध होती है । इस समय मे निद्रा का त्यागकर उठना सबसे बेहतर होता है। ईस्वर का ध्यान करते हुये शारीरिक चिंताओ का त्याग कर देना चाहिए । शौच क्रिया करने के उपरान्त दातुन मंजन आदि करना चाहिए । 

बरगद अर्जुन नीम महुआ बबूल की दातुन करे :- वट ,अर्जुन ,नीम महुआ ,बबूल आदि की दातुन करनी चाहिए। जिसका रस कषाय कडुआ और तिक्त हो ऐसा दातुन जिसकी मोटाई सबसे छोटी उंगली के समान हो के अग्र भाग को दातों से कुचकर मुलायम बना ले जिससे मसूड़ो को कष्ट न हो,ऐसे दातुन से दाँतो के मल को साफ करे । भारत मे दातुन करने का विधान बहुत प्राचीन है । कषाय रसो से भरपूर व्रछों की दातुन करने से मसूड़ो मे संकुचन से दाँतो मे मजबूती आती है ।  मसूड़ो के संकोचन से दांत मजबूत होते है। तिक्त और कटु रस से लार अधिक बनती है । इसी लार से दाँतो के सभी रोग दूर हो जाते है। दातुन करने से दाँतो के मसूड़े मजबूत व निरोग हो जाते है।

सुझाव :- कुछ रोगो मे दातुन न करने का सुझाव दिया गया है । जैसे अजीर्ण रोग (अपच या बदहज़मी ) इस रोग मे दातुन करने से बार बार मसूड़ो पर घर्षण होता है । जिससे नाड़ियो मे हलचल होती है। और शरीर को तकलीफ होती है । मुह मे जो ग्रंथिया लार बनाती है । वह लार दातुन से बाहर निकल जाता है । लार बाहर निकाल जाने से भोजन का पाचन और आमाशय की शुद्धि नहीं हो पति है। यही लार यदि शरीर के अंदर जाए तो पाचन मे सहायक हो और आमाशय की शुद्धि भी हो । जो लोग दातुन नहीं कर सकते वो दंतमंजन करे । जो लोग किसी बजह से दंतमंजन भी नहीं कर सकते उनको मुख शुद्धि के लिए 12 बार पानी से कुल्ला करना चाहिए।

आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या

आखो के लिए लाभकारी काजल या सुर्मा :- काजल और सुर्मा आखो के लिए बहुत लाभकारी है । नेत्र आग्नेय है । नेत्रो को कफ से बचाना बहुत जरूरी है। नेत्रो से कफ निकलता रहे इसके लिए काजल या सुर्मा अवश्य लगाना चाहिए । सौवीर अंजन एक तरह का खनिज पदार्थ है । जो आसानी से जड़ी बूटी शॉप पर आपको मिल जायेगा,इसे नीबू के रस मे सातबार घोटकर बारीक चूर्ण बना ले।फिर किसी सालका या साफ उंगली की मदद से लगाए । आखो मे होने वाली बीमारियो को दूर करने मे यह बहुत ही लाभकारी है,इसे प्रतिदिन लगाए । मोतियाबिंद को खत्म करे रसंजन:- सप्ताह मे कम से कम एक बार रसान्जन का आखो मे उपयोग करने से आखो से कफ का स्राव होता है । आखो मे होने बाला मोतियाबिंद कफ का ही एक स्वरूप है । यदि इस कफ का नाश कर दिया जाए तो मोतियाबिंद नहीं होगा, और है तो ठीक हो जाएगा । आइये जानते है रसान्जन बनाने के बारे मे  एक भाग हल्दी और तीन भाग देसी गाय का दूध को अच्छे से पकाकर बना ले फिर इसे सप्ताह मे एक दिन लगाए  इससे कफ का नाश होगा ।  

शरीर की मालिस करे :- शरीर मे नित्य (सरसों )तेल की मालिस करे । मालिस करने से असमय बुढ़ापा और श्रम से होने बाली थकान दूर होती है । नित्य मालिस करने से प्रसन्नता ,पुष्टि और दीर्घ आयु प्राप्त होती है । और सुखपूर्वक नीद भी आती है । नित्य तेल मालिस से त्वचा सुंदर होती है । तेल मालिस विशेष रूप से सिर ,कान ,और पैरो की करनी चाहिए । निरंतर तेल मालिश से मांसपेशिया मजबूत होती है । मांसपेशियो के दुर्बल होने से अंगो मे सिथिलता आती है । सिर मे तेल मालिस करने से कफ का नाश होता है । तेल सुछ्म होने से यह त्वचा के अंदर चला जाता है । तेल गर्म होने से यह विक्रत कफ को दूर करता है। कानो मे नियमित रूप मे तेल डालने से कानो के अंदर की वायु संतुलित रहती है । चलने -फिरने से पैरो मे रुच्छता के कारण पैरो मे विमाई फट जाती है ।अतः पैरो की दो नसे आखो से जुड़ी होने के कारण पैरो की रुच्छता आखो तक पहुचती है । इसलिए पैरो की मालिश और सफाई बहुत जरूरी है।

उत्तम दिनचर्या

व्यायाम :- व्यायाम करने से शरीर मे पुष्ट और बलबान होता है । मोटापा नहीं आता ,शरीर की कार्य शक्ति बढ़ती है । अग्नि की दीप्ति बढ़ती है ,और लिवर व्रद्धि नही होता है । शरीर के सभी अंग मजबूत होते है । शरीर के सभी 

अंगो को ताकत प्रदान करने के लिए दण्ड,कसरत ,दौड़ना ,तैरना ,कुश्ती आदि व्यायामो का शास्त्रो मे वर्णन किया गया है। शास्त्रो मे आसनो और सूर्य नमस्कार का वर्णन विशेष रूप से किया गया है। जिनको हम अपनी दैनिक दिनचर्या मे सामिल करके शरीर को हमेशा चुस्त दुरुस्त और ऊर्जावान रख सकते है।

सुझाव:- व्यायाम से वात और पित्त की व्रद्धि होती है । यदि किसी को वात या पित्त संबंधी रोग हो तो उन्हे व्यायाम नहीं करना चाहिए । वाल्य अवस्था मे शरीर की व्रद्धि के लिए कफ की आवश्यकता होती है। यदि बालक व्यायाम करता है तो कफ मे कमी आती है । जिससे उसकी शारीरिक व्रद्धि रुक जाती है । अतः 10 वर्ष की आयु तक बालक बालिकाओ को व्यायाम नहीं करना चाहिए । 10 वर्ष की उम्र तक वल्यकाल होता है। घी दूध का सेवन करने वाले व्यक्ति को शीतकाल और वसंतकाल मे अपनी शक्ति का आधा व्यायाम ही करना चाहिए । समुचित दूध या घी न मिले तो व्यायाम नहीं करना चाहिए । क्यूकि व्यायाम करने पर शरीर का स्नेहिल कफ शरीर का पोषण करता है । यदि दूध घी  का सेवन करते हुये व्यायाम किया जाए तो शरीर ऊर्जावित होता है। व्यायाम करते हुये जब सांस की गति बढ़ जाए ,बगलो और माथे पर पसीना आने लगे तो व्यायाम बंद कर देना चाहिए। अधिक व्यायाम करने से प्यास मे व्रद्धि ,मांसपेशियो का छय,शीघ्र थकावट ,मानसिक दुर्बलता,ज्वर और वमन रोग उत्पन्न हो सकता है। अधिक व्यायाम ,अधिक जागना ,अधिक चलना ,अधिक संभोग ,अधिक हसना ,अधिक बोलना आदि सभी खराब है।

स्नान :- स्नान करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है । नहाने से भूख खुलकर लगती तथा आयु व्रद्धि और शारीरिक वल भी बढ़ता है। नहाने से त्वचा की खुजली और शारीरिक थकान दूर होती है। शरीर का ताप भी कम होता है। समान्यतः स्नान शीतल जल से ही करना चाहिए। अधिक सर्दियों मे हल्के गर्म जल से भी नहाया जा सकता है। लेकिन स्नान के समय गर्म जल सिर पर नहीं डालना चाहिए। गर्म जल यदि सिर और आखो पर डाला जाए तो आखो और बालो का वल नष्ट होता है। हमे भोजन से पहले ही स्नान करना चाहिए । शरीर के अंदर से निकली हुयी ऊष्मा भीतर वापस लौट जाती है और यह लिवर को वल प्रदान करती है। वलवर्धन और वायु की व्रद्धि शरीर की स्वच्छता पर निर्भर करती है। स्नान से शरीर जब स्वच्छ होता है।तो मन मे उत्साह,और शरीर मे शक्ति का संचार होता है। इससे हमारी आयु नियमित और लंबी होती है। 

सुझाव:- मुह का लकवा ,नेत्ररोग,मुख के रोग ,कर्ण रोग,अतिसार ,अजीर्ण आदि रोगो से पीढ़ित  व्यक्ति को स्नान नहीं करना चाहिए। स्वस्थ व्यक्ति को भोजन के बाद कभी भी स्नान नहीं करना चाहिए। नहाने से शरीर मे तत्काल वायु की व्रद्धि होती है। यह वायु शरीर के आंतरिक भाग मे स्थित होती है। मुह का लकवा ,वायु का रोग है। अतः इसरोग मे स्नान करने से वायु की और अधिक व्रद्धि होती है। इसलिए इन रोगो मे स्नान बर्जित है। नेत्र पित्त प्रधान होते है। नेत्र रोग मे स्नान करने से पित्त नेत्रो मे अधिक पहुचता है। और नेत्रो मे गर्मी बढ़ जाती है। तो नेत्रो की तकलीफ बढ़ जाती है। अतः नेत्र रोग मे स्नान नहीं करना चाहिए। मुख के अंदर वात,पित्त,और कफ तीनों होते है। यदि मुख रोग हो तो स्नान करने से वात ,पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ जाता है। इसलिए मुख के रोगो मे भी स्नान नहीं करना चाहिए। कानो मे वायु का स्थान होता है। नहाने से कानो मे वायु का प्रकोप बढ़ता है। इसलिए कानो के रोग होने पर स्नान नहीं करना चाहिए। अतिसार रोग मे आमाशय मे पानी अधिक बढ़ जाता है। इससे पित्त बढ़ जाता है। स्नान करने से शरीर की ऊष्मा अंदर जाने से अतिसार रोग मे व्रद्धि होती है। अंजीर्ण रोग मे जठराग्नि की अग्नि मंद पड़ जाती है। जिसके कारण भोजन अधपचा रहता है ,इससे कफ का निर्माण होता है। नहाने से भी कफ मे व्रद्धि होती है।आमाशय मे कफ की व्रद्धि होने से जठराग्नि की गति और  मंद पड़ जाती है। इसलिए स्नान न करने की सलाह दी जाती है। यदि भोजन के बाद नहाया जाए तो ऊष्मा अंदर की ओर जाने से अधिक गर्मी आमाशय मे होती है। जिसकी वजह से भोजन का पाचन सुचारु रूप से नहीं हो पता है।

अतः मुह का लकवा ,नेत्ररोग,मुख के रोग ,कर्ण रोग,अतिसार ,अजीर्ण आदि रोगो से पीढ़ित व्यक्ति गले से नीचे स्नान कर सकते है। 

दिनचर्या क्या है

मल मूत्र का त्याग:- मल मूत्र को ज़बरदस्ती निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। जब मल मूत्र का वेग आए तो उन्हे रोकना नहीं चाहिए। मल मूत्र को रोककर कोई भी कार्यनहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष :- किसी स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य निरंतर बना रहे,इसके लिए AyurdailyLife ब्लॉग के द्वारा वाग्भट्ट की अस्तङ्ग हृदयम मे वर्णित नियमित दिनचर्या को आप के साथ सरल और विस्तारपूर्वक साझा किया है। 

अतः हमे अपने जीवन को स्वस्थ ,सुंदर और दीर्घायु बनाने के लिए आयुर्वेद द्वारा बताई गयी नियमित दिनचर्या का पालन करना चाहिए।